स्वच्छता समिति घोटाला…समिति और नगर निगम कर्मचारियों के खिलाफ गबन के आरोप में मुकदमा
मई 2024 में तत्कालीन डीएम की ओर से कराई गई जांच में देहरादून नगर निगम में करीब 99 पर्यावरण मित्र अनुपस्थित पाए गए थे। इन सभी काे किया गया भुगतान भी संदेहास्पद पाया गया था। तहरीर में बताया गया कि वार्ड में उक्त कर्मचारियों के भुगतान के लिए सचिव, अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष की ओर से सत्यापन किया जाता था।
जांच के करीब एक साल बाद आखिरकार नगर निगम में हुए स्वच्छता समिति घोटाले के मामले में मुकदमा दर्ज किया गया है। उप नगर आयुक्त की ओर से स्वच्छता समिति के अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष और नगर निगम के कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी।
उप नगर आयुक्त गौरव भसीन की ओर से दी गई तहरीर में पुलिस को बताया गया कि मई 2024 में तत्कालीन डीएम की ओर से कराई गई जांच में देहरादून नगर निगम में करीब 99 पर्यावरण मित्र अनुपस्थित पाए गए थे। इन सभी काे किया गया भुगतान भी संदेहास्पद पाया गया था। तहरीर में बताया गया कि वार्ड में उक्त कर्मचारियों के भुगतान के लिए सचिव, अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष की ओर से सत्यापन किया जाता था। इसके बाद ही नगर निगम के कर्मचारियों की ओर से समिति के खाते में धनराशि निर्गत करने की संस्तुति की जाती थी।
इसके बाद इन्हीं के माध्यम से वार्ड के सचिव, कोषाध्यक्ष के हस्ताक्षर से कर्मचारियों को भुगतान दिया जाता था। पुलिस ने इस मामले में आरोपियों के खिलाफ सरकारी धन का गबन करने के मामले में मुकदमा दर्ज किया है।
ये था मामला
दरअसल, 2016-17 में नगर निगम क्षेत्र का विस्तार हुआ और करीब 72 गांव निगम क्षेत्र में जोड़े गए। नए परिसीमन के बाद जब 2018 में नगर निगम का बोर्ड गठित हुआ तो बोर्ड बैठक में पार्षदों ने बात उठाई कि नगर निगम क्षेत्र बड़ा हो गया है और क्षेत्र में सफाई की दिक्कत आ रही है। ऐसे में सफाई कर्मचारियों की भर्ती होनी चाहिए।
इसके बाद बोर्ड बैठक में प्रस्ताव पास कर हर वार्ड में एक स्वच्छता समिति का गठन किया गया। हर वार्ड में करीब 10-10 पर्यावरण मित्र भर्ती किए गए। इसमें घोटाले की नींव इस बात से रख दी गई कि इन पर्यावरण मित्रों को तनख्वाह खाते में न देकर उनको नकद में दी जाएगी।
दिसंबर 2023 में जब नगर निगम बोर्ड का कार्यकाल पूरा हुआ तो प्रशासक के हाथ नगर निगम की कमान आई। इसके कुछ महीनों में ही इस घोटाले से पर्दा उठना शुरू हो गया। तत्कालीन डीएम-प्रशासक सोनिका ने इस मामले की जांच तत्कालीन सीडीओ झरना कमठान को सौंपी। जांच में पाया गया कि 99 के करीब ऐसे पर्यावरण मित्र हैं, जिनके नाम से नगर निगम से हर महीने तनख्वाह जारी होती रही, लेकिन इनका धरातल पर कहीं अता पता नहीं मिला। जांच डीएम को सौंप दी गई। तब से लेकर आज तक यह मामला फाइलों में दबकर रह गया।
हरिद्वार घोटाले के बाद हरकत में आया निगम
पिछले एक साल से यह फाइल कागजों में दबी हुई थी, लेकिन अभी हाल ही में प्रशासक कार्यकाल में हरिद्वार नगर निगम में किए गए भूमि घोटाले का सच सामने आया तो मुख्यमंत्री ने कड़ी कार्रवाई करते हुए डीएम सहित कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया। माना जा रहा है कि इसी कार्रवाई के डर से नगर निगम में देहरादून में हुए इस करीब आठ करोड़ रुपये के घोटाले की यह फाइल भी बाहर आ गई। हरिद्वार में कार्रवाई के कुछ ही दिन बाद नगर निगम देहरादून के अधिकारियों ने भी इस मामले में दबी हुई फाइल को निकालकर मुकदमा दर्ज कराया है।

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