उत्तराखंड योग नीति 2025 को मिली कैबिनेट की मंजूरी।
उत्तराखंड को भारत की अध्यात्मिक और योग परंपरा की भूमि माना जाता है, जो सदियों से ऋषियों, मुनियों और साधकों की साधना स्थली रही है। आज भी ऋषिकेश, कौसानी, चम्पावत जैसे स्थल कई दशकों से योग साधना के प्रमुख केन्द्र है। इस ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को सहेजते हुए उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2025 में एक महत्वाकांक्षी पहल के तहत उत्तराखंड योग नीति 2025 की घोषणा की है। यह देश की प्रथम योग नीति है जो राज्य को योग और वेलनेस की वैशिक राजधानी के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से तैयार की गई है। जिसे राज्य कैबिनेट द्वारा मंजूरी प्रदान की गई है।
इस नीति का सबसे बड़ा उद्देश्य है कि योग को केवल एक आध्यात्मिक या व्यक्तिगत साधना तक सीमित न रखा जाए, बल्कि उसे एक सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक और पर्यटन-आधारित मॉडल के रूप में विकसित किया जाए। नीति का विज़न अत्यंत स्पष्ट है – उत्तराखंड को योग और वेलनेस का वैश्विक केंद्र बनाना।
इस योग नीति के तहत सरकार का उद्देश्य कई स्तरों पर काम करना है। सबसे पहले तो राज्य में योग पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि उत्तराखंड को अंतरराष्ट्रीय योग और आध्यात्मिकता के केंद्र के रूप में स्थापित किया जा सके। इसके साथ ही गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए योग संस्थानों के लिए नियम और दिशा-निर्देश बनाए जाएंगे। जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से योग को जन-जन तक पहुँचाया जाएगा और इसे स्कूलों तथा कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सहयोग कर के योग के क्षेत्र में क्षमता निर्माण किया जाएगा। साथ ही, विश्वस्तरीय योग केंद्रों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाएगा।
नीति के तहत कुछ विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। जैसे कि वर्ष 2030 तक उत्तराखंड में कम से कम पांच नए योग हब स्थापित किए जाएंगे। मार्च 2026 तक राज्य के सभी आयुष हेल्थ और वेलनेस सेंटर्स में योग सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। समुदाय-आधारित माइंडफुलनेस कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे, जो अलग-अलग आयु, लिंग और वर्ग की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किए जाएंगे।
इसके अतिरिक्त, योग संस्थानों का शत प्रतिशत पंजीकरण सुनिश्चित किया जाएगा, एक विशेष ऑनलाइन योग प्लेटफार्म शुरू किया जाएगा, योग पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रचार अभियान और अंतरराष्ट्रीय योग सम्मेलनों का आयोजन किया जाएगा तथा मार्च 2028 तक 15 से 20 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ भागीदारी विकसित करने का लक्ष्य है।
नवीन स्थापित होने वाले तथा एक्सपेंशन करने वाले केंद्रों को पहाड़ी क्षेत्रों में परियोजना लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम ₹20 लाख तक तथा मैदानी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत या अधिकतम ₹10 लाख तक का अनुदान दिया जाएगा। कुल वार्षिक अनुदान की सीमा ₹5 करोड़ तक होगी।
जागेश्वर, मुक्तेश्वर, व्यास घाटी, टिहरी झील और कोलीढेक झील को योग हब के रूप में विकसित किए जाने का लक्ष्य है अतः इन क्षेत्रों में विकसित होने वाले योग केंद्रों को विशेष प्राथमिकता दी जाएगी।
योग, ध्यान और प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में शोध को प्रोत्साहित करने के लिए ₹10 लाख तक प्रति परियोजना का अनुदान दिया जाएगा। यह सुविधा विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों, स्वास्थ्य संगठनों, आयुष संस्थाओं और एनजीओ के लिए होगी। कुल मिलाकर नीति अवधि में ₹1 करोड़ तक की राशि अनुसंधान हेतु निर्धारित की गई है।
राज्य में पहले से चल रहे होमस्टे, रिसॉर्ट, होटल, स्कूल, कॉलेज आदि में यदि योग केंद्र स्थापित किए जाते है तो नियोजित होने वाले योग अनुदेशक हेतु प्रत्ति सत्र ₹250 तक की प्रतिपूर्ति उक्त संस्था को दी जाएगी, प्रति केंद्र में एक अनुदेशक हेतु प्रति माह 20 सत्रों की प्रतिपूर्ति की जाएगी।
उत्तराखंड सरकार द्वारा योग और प्राकृतिक चिकित्सा निदेशालय की स्थापना की जायेगी, जो इस पूरी नीति के सचालन, नियमन, अनुदान वितरण और विभिन्न गतिविधियों की निगरानी करेगा। निदेशालय में एक निदेशक, संयुक्त निदेशक, उपनिदेशक, योग विशेषज्ञ, रजिस्ट्रार और अन्य आवश्यक स्टाफ शामिल होंगे। निदेशालय का कार्य योग केंद्रों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना, योग संस्थानों का पंजीकरण और योग प्रमाणन बोर्ड के अंतर्गत मान्यता प्राप्त करवाना, योग केंद्रों की रेटिंग प्रणाली बनाना और एम.ओ.यू. के माध्यम से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सहयोग स्थापित करना होगा।
नीति की समीक्षा और निगरानी के लिए एक उच्च स्तरीय राज्य समिति का गठन किया जाएगा। नीति के सफल कार्यान्वयन के लिए सरकार द्वारा आगमी 5 वर्षों में लगभग ₹35 करोड़ का व्यय होगा, इसमें से योग केंद्रों के लिए ₹25 करोड़, अनुसंधान के लिए ₹1 करोड़, शिक्षक प्रमाणन हेतु ₹1.81 करोड़ और मौजूदा संस्थानों में योग सत्रों के लिए संचालन में सहयोग हेतु ₹7.5 करोड़ के व्यय होने का आकलन है।
इस नीति से राज्य को कई प्रकार के सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। एक ओर यह राज्य में लगभग 13,000 से अधिक रोजगार सृजित करेगी, 2500 योग शिक्षकों के लिए योगा सर्टिफिकेशन बोर्ड से प्रमाणित होंगे और 10,000 से अधिक योग अनुदेशकों को होमस्टे, होटल आदि में रोजगार मिलने की संभावना है। योग पर्यटन को बढ़ावा मिलने से राज्य की अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम मिलेगा, जन सामान्य में स्वास्थ्य संवर्धन के प्रति जागरूकता बढ़ेगी, योग शिक्षा में सकारात्मक परिवर्तन आएगा और राज्य को योग परिक्षेत्र में वैश्विक पहचान मिलेगी।

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